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पारंपरिक कांवर लेकर आये मिथिला के भक्तों से पटी बाबानगरी प्लास्टिक के छत के नीचे बाबा की भक्ती में रमे है तिलकहरूए

देवघर बंसत पंचमी के दिन मिथिलावासी बाबा पर तिकल एवं गुलाल चढ़ाकर एक दुसरे को गुलाल लगाकर फाग गीत गाना प्रारंभ कर देते हैं यह होली तक जारी रहता है बसंत पंचमी पर इस्तेमाल किये गये गुलाल को तिलकहरुए अपने घर जाते हैं और इसी गुलाल से नवविवाहित की पहली होली होती हैं बाबा को तिलक चढ़ाने के बाद पूरे मिथिला में एक महीने तक होली खेली जाती है मिथिलावाशी अपने आपको को बाबा के ससुराल वाले मानते है और ये परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है।

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