धनबाद : झमाडा के मृत कर्मियों के आश्रित विगत 354 दिनों से धरना पर बैठे हैं. धरना पर बैठे लोगों का पालनहार, घर का कर्ता-धर्ता दुनिया छोड़ चुका है. इन आश्रितों की मांग है कि सरकारी नियमानुसार उन्हें अनुकंपा पर नौकरी दे दी जाए. मगर न तो उनकी मांग सुनी जा रही है और न ही ऐसा कोई आश्वासन उन्हें मिल रहा है. आंदोलन का पूरा साल गुजर गया. मगर उन्हें नौकरी तो नहीं मिली, बल्कि जिंदगी में जो कुछ सुख-चैन बचा था, वह भी चला गया. मेहनत-मजदूरी भी हाथ से चली गई. घर में जो कुछ कीमती सामान था, वह बिक चुका है.. रोजी-रोटी का संघर्ष उनके लिए मुश्किल होता जा रहा है. हालत यह है कि जिन अधिकारियों के सामने नौकरी के लिए गिड़गिड़ा रहे थे, वे भी उनके पीछे पड़ गए हैं.
झमाडा प्रबंधन की बेरुखी ने उन आश्रितों को कहीं का नहीं रखा. उनकी गुहार सुनने की बजाय प्रबंधन ने अपने ठेकेदारों व उनके गुंडों से हमला बोल दिया. 45 आंदोलनकरी आंदोलन को अंजाम तक पहुंचाने की चाह में अब तक लगभग तीन लाख रुपये से अधिक गंवा चुके है. बदले में उन्हीं झिड़कियों, उपेक्षा और तिरस्कार के सिवा कुछ नहीं मिला है. इन आश्रितों से बात छेड़ते ही उनका दर्द छलक कर बाहर आ जाता है. पेश है उनकी कहानी, उन्हीं की जुबानी
केन्दुआ थाना छेत्र के गंसाडीह 3 नंबर निवासी चंपा देवी घर में अकेली है. पति मन्टुलाल बेगीझमाडा कर्मी थे. लंबी बीमारी के बाद उनका देहांत वर्ष 2013 में हो गया. तब से वह अपना पेट भरने के लिए दूसरों के घरों का जूठन मांज रही है. चंपा बताती है कि उनके पति को दमा की बीमारी थी. विभाग से समय पर पैसा न मिला तो इलाज भी ठीक से नहीं करा सकी और एक दिन दुनिया से चले गए. वह अकेली रह गयी. पिछले 10 वर्षों से दूसरों के घरों में जूठे बर्तन मांज कर गुजर बसर कर रही है.
राजगंज की भानु देवी बताती हैं कि उनके पति चारकु हाड़ी की मृत्यु वर्ष 2010 में बीमारी से हो गयी. तब से परिवार पर मानो कहर टूट पड़ा. कुछ दिन घर की जमा पूंजी से खर्च चला. बाद में परिवार के 6 सदस्यों का भार उसके 10 वर्षीय बेटे के कंधे पर आ गया. शुभम पास के प्राइवेट स्कूल में झाड़ू व साफ सफाई का काम करता है. काम के बदले जो पैसे मिलते हैं, उससे बमुश्किल परिवार के सदस्यों का पेट भरता है. वह बताती हैं स्थिति ज्यादा खराबब होने पर वह खुद आस पड़ोस के घरों में साफ सफाई करने निकल जाती है.
धनबाद थाना क्षेत्र के धैया कोरंगा बस्ती निवासी दुलारी देवी के पति की मौत के बाद विकलांग बेटी समेत परिवार के 8 सदस्यों का पेट पाल रही है. वह बताती हैं कि पति अजीत कोरंगा की मृत्यु 15 वर्ष पूर्व कैंसर से हो गई. पैसे के अभाव में इलाज भी नहीं करा सकी. उनके घर में कुल 8 सदस्य हैं, जिसमें एक 16 वर्षीय विकलांग बेटी भी है. सभी को पालने के लिए वह पिछले 15 वर्षों से आस-पड़ोस के घरों में चौका बर्तन का काम करती आ रही है.