कृषि बिल का विवाद गहराते हुए अब राजनीतिक दलों तकाजा पहुंचा है. कुछ राजनीतिक दल व्यवसायियों के आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं. वहीं कुछ दलों का कहना है कि व्यवसायियों को राजनीति के फेर में नहीं पड़ना चाहिए. उन्हें व्यवसाय पर ध्यान देना चाहिए. ऐसे दलों का कहना है कि जनता को दिक्कत होगी तो वह खुद मैदान में उतरेगी. आखिर व्यवसायियों ने जब बेरोजगार युवकों और किसानों के आंदोलन में उनकी दिक्कत का ध्यान नहीं रखा तो कृषि शुल्क के कारण उन्हें जनता की याद क्यों आ रही है. इस बीच झारखंड चैंबर ऑफ कॉमर्स ने भी तर्कपूर्ण बातों के साथ अपनी मंशा साफ कर दी है कि अगर उनकी बात सरकार नहीं मानी तो बाजार बंद करेंगे, पलायन होगा, जिसके लिए जम्मेवार सरकार होगी. दूसरी ओर सरकार ने विधेयक को प्रभावी करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है. इससे राज्यभर के खाद्यान्न व्यापारियों, कृषकों एवं खाद्य प्रसंस्करण उद्यमियों में गहरा आक्रोश है. कृषि शुल्क विधेयक को व्यवसायियों ने काला कानून बताते हुए राज्य सरकार से उसे वापस लेने की मांग कर रहे हैं.